Budaun shikhar

उत्तर प्रदेश

जम समस्याओं की सुनाने की भी बेबसी?

योगी शासन काल में बीजेपी के जन प्रतिनिधियों का प्रतिरोध-प्रदर्शन कोई नई घटना नहीं है। प्रदेश में बीजेपी सरकार के गठन के समय से ही प्रदेश के काबीना मंत्रियों, विधायकों, सांसदों, जिला पंचायत अध्यक्षों और नगर निगम के पार्षदों के भीतर यह भावना घर कर गई है कि योगी राज के अधिकारियों में जनप्रतिनिधियों द्वारा लाई गई शिकायतों की कोई सुनवाई नहीं होती। इसके लिए वह किसी और को नहीं, स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ही ज़िम्मेदार ठहराते हैं।

हुआ यह था कि अपनी सरकार के गठन के कुछ ही दिनों बाद अधिकारियों की बैठक में मुख्यमंत्री ने स्पष्ट वक्तव्य जारी किया था कि “आप अपने विवेक से काम करें, विधायकों के दबाव में आने की ज़रूरत नहीं है।” प्रदेश भर के छोटे और बड़े अधिकारियों के लिए इतना संकेत काफी था।

.         बीजेपी के भीतर शिकायतों के लिए कैसे सारे आंतरिक चैनल बंद कर दिए गए हैं और कैसे इस मजबूरी पर जनप्रतिनिधियों को सोशल मीडिया की शरण में जाना पड़ रहा है, इसके लिए कुछ उदाहरण ही काफ़ी हैं। हरदोई से बीजेपी सांसद जयप्रकाश ने हाल ही में फेसबुक पर अपने गुस्से को जताते हुए लिखा “मैंने अपने 30 साल के राजनीतिक जीवन में अधिकारियों की ओर से ऐसी बेरुख़ी कभी नहीं देखी।”

प्रशासनिक मशीनरी भी बेपरवाह !

पूरे लॉकडाउन और कोरोना काल का आलम यह है कि प्रशासनिक मशीनरी जिस तरह बेपरवाह हो गयी और जनप्रतिनिधियों के प्रति उनके दायित्व काफ़ूर हो गये उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसका एक ही उदाहरण काफ़ी है। आगरा में कोरोना के बिगड़ते हाल पर मेयर नवीन जैन (बीजेपी) ने मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर ज़िलाधिकारी को तुरंत हटाने की मांग करते हुए प्रार्थना की कि “आगरा को वुहान होने से बचाइए।” इस चिट्ठी के पक्ष में आगरा के सभी 9 विधायक, 2 सांसद, ज़िला पंचायत प्रमुख (सारे बीजेपी) थे। ज़िलाधिकारी को बदलना तो दूर, मुख्यमंत्री ने मेयर, विधायकों और सांसदों को सरकार को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए जमकर फटकारा।

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