बदायूँ : उझानी मे मेरे राम सेवा आश्रम पर पुरुषोत्तम मास में चलने वाली श्री राम कथा महोत्सव के 21वें दिन रवि जी समदर्शी महाराज ने कहा निर्मल हृदय-निर्मल मन वालो को प्राप्त होते है भगवान।
रवि जी समदर्शी महाराज ने श्री राम कथा सुनाते हुए कहा जीवन में पाप तभी तक रह सकते हैं जब तक हमारे कानों से राम कथा हृदय में नहीं पहुंच पाई और जब तक निर्मल हृदय ना हो निर्मल मन ना हो तब तक भगवान की प्राप्ति नहीं होती,
भगवान पहले दिन तमसा नदी के किनारे समस्त अयोध्या वासियों के साथ रुक रात्रि निवास किया
भगवान अर्ध रात्रि में उठे और सुमंत को उठाकर कहते हैं जल्दी चलो नहीं तो सब लोग जाग जाएंगे और रथ ऐसे चलाना की कोई रथ के चिन्ह को देखकर हमें ढूंढ ना पाए, श्रंगवेरपुर की तरफ चले
प्रातः होने पर सभी अवध वासी जगे ना रथ दिखा ना भगवान दिखे ना सुमंत्र दिखे तब दुखी होकर प्राण देने की बात करने लगे भगवान के बिना जीना कैसा तब बुजुर्गों ने समझाया 14 वर्ष तक इंतजार करिए,भगवान मिलेंगे सबने भोग छोड़ दिए भजन छोड़ दिया भूषण छोड़ दिए केवल जप मनन दर्शन की इच्छा से तप करने लगे भगवान कब मिलेंगे यही इच्छा इधर मेरे राम जी सीता और सुमंत सहित श्रृंगवेरपुर पहुंचे,राम जी ने उतरकर गंगा जी को प्रणाम किया दूर से
जैसे ही संग बीरपुर के राजा गुरु को पता चला की राजकुमार राम आए हैं दौड़कर चरणों में माता रख दिया भगवान ने उठकर हृदय से लगाया गुरु भैया तुम्हारा स्थान हृदय में है चरणों में नहीं क्योंकि रामहि केवल प्रेम प्यारा सारे गिरी वास वनवासी दौड़ कर आए जो कुछ था भगवान के चरणों में अर्पित करके प्रणाम करने लगी भगवान सबसे प्रेम करते हैं सबके हाल-चाल पूछते हैं रात्रि में जब भगवान सिंह छुपा वृक्ष के नीचे जानकी जी सहित घास फूस के बीच होने पर सोए इसे देखकर निषाद को विषाद होने लगा तब लखन ने समझा कर निषाद का विचार दूर किया यही राम कथा की गीता है लखन कहते हैं भैया जो जैसा करता है वैसा भरता ही है चाहे वह कोई भी कोई किसी के सुख और दुख का डाटा नहीं है सब अपने कर्मों के अनुसार सुख और दुख भगते इसमें मेरे पिताजी दशरथ और कैकई का कोई रोल नहीं इसलिए केवल और केवल मन से मन कर्म वचन से भगवान का भजन करो भगवान के चरणों में प्रीति लगाओ प्रातः भगवान जागे और इधर सुमंत को भगवान वापस जाने के लिए कहते हैं लेकिन सुमंत जाना नहीं चाहते तब भगवान ने विभिन्न प्रकार की कथाएं सुन कर उनका दुख दूर किया और जबरदस्ती सुमंत को रथ पर बिठाकर अयोध्या की ओर भेजो और गंगा जी के निकट आए एक केवट पर पर पर रख बैठा है भगवान बोले केवट भैया जरा अपनी नाव से में पर उतार दो केवट कहता नहीं मैं आपका मर्म जानता हूं भगवान बोले कैसा मर्म बोले वही मर्म आपके चरणों की धूल के स्पर्श मात्र से पत्थर से नारी बन गया,केवट की कितनी बड़ी साधना रही होगी जिस मर्म को जानकी नहीं समझ पाई अवध वासी नहीं समझ पाए लक्ष्मण नहीं समझ पाए और केवट ने समझ लिया और प्रभु अगर मेरी नाव नारी बन गई तो वह कोई ऐसी वैसी नई तो बनेगी नहीं वह ऋषि पत्नी बनेगी,उसे अलग आवास चाहिए अलग भोजन अलग बर्तन और मैं तो गरीब व्यक्ति हूं मेरे पास क्या रखा है यह सब अलग व्यवस्थाएं कैसे कर पाऊंगा और इसी नाव से तो मैं अपना परिवार चलाता हूं, अगर नारी बन गई तो हम परिवार कैसे पालेंगे इसलिए अगर आपको गंगा पार जाना है तो हमसे कहो कि हमारे पैर धो लो भगवान बड़े प्रसन्न होते केवट की बात सुनकर भगवान कहते हैं लखन मेरे अनुशासन को मानने वाला भक्त है मेरा प्रिय सेवक है केवट में ना लोभ है ना काम है ना मोह है भगवान से केवट बोला कि हमारी तुम्हारी जाती और काम एक ही है, हम नाव के आप जीवन के केवट हो काम भी एक है और जाति भी है लखन जी को क्रोध आ गया पर कमान चढ़ा ली तीर पर और बोले अभी मार देता हूं तुरंत मारो मेरे तो लाभ ही लाभ है भगवान बोली अरे केवट तेरे कौन-कौन से लाभ है क्या लाभ है तेरा करने से तो नुकसान होता है बोले पहले लाभ भगवान के भाई के हाथ से मारूंगा दूसरा आप गंगा के किनारे मारूंगा तीसरा लाभ आपके दर्शन करते मारूंगा चौथ लाभ आपको मेरा संस्कार करना पड़ेगा मेरे तो लाभ ही लाभ भगवान करुणालु हैं सुन केवट के बहन भगवान खिल खिलाकर हंस पड़े बनवास के बाद आज पहली बार खिल खिलाकर से भगवान और भगवान ने कहा केवट जिससे तेरी नव बची रहे और हम पर हो जाएं वही कार्य कर दौड़कर घर गया घर से जल लेकर आया जिस कठौती ने उसे बचाया है उसकी नाव बचाई है पानी उलीचा है उसे कठौती को लेकर आया उसमें केवट ने नई गंगा प्रेम की गंगा को प्रकट किया जिसका सुमिरन करने मात्र से भव सिंधु से हम पर हो जाते हैं आज वह गंगा पार होने के लिए केवट के नहर कर रहे हैं केवट से निवेदन कर रहे हैं केवट भगवान के पैर धोने लगा अति आनंद में है प्रसन्नता में केवट की विशेषता यह है वह कामी नहीं है और लोभी नहीं है वह क्रोधी नहीं है वह मोही नहीं इसीलिए तो भगवान से दर्शन देने खुद गंगा किनारे आए केवट ने भगवान के चरण अमित को खुद पिया अपने परिवार को पिलाया समस्त ग्राम वासियों को पिलाया और अपने पितरों को उतार दिया भगवान ने मंत्र बोले और केवट जलडन करने लगा तब भगवान को लखन जान की सहित नाव में बिठाकर नाव चलाने लगा गंगा जी भगवान की बेटी है भगवान के चरणों को स्पर्श करना चाहती और गंगा में उफान आने लगा गंगा से केवट हाथ जोड़कर गंगा मैया से निवेदन करता है मेरी नाव में भगवान बैठे है,धीरे बहो ।
आज की कथा के यजमान धर्मेंद्र अनुराधा सक्सेना, ने विधिवत बेदियों,ग्रहों, ब्यास,व्यासपीठ का पूजन कर आरती प्रसाद ग्रहण किया।
विष्णु गुप्ता अंजू चौहान लक्ष्मी गुप्ता अजय कुमार, गिरीश पाल सिंह सिसोदिया ओम प्रकाश चौहान वीरपाल सिंह सोलंकी अरविंद शर्मा सहायता शर्मा,कमलेश मिश्रा का मिली तिवारी ओम प्रकाश चौहान अलंकार सोलंकी धीरेंद्र सोलंकी सतेन्द सिंह चौहान प्रियंका सोलंकी राखी साहू मोना चौधरी अर्चना चौहान, विपिन सिंह अजय पाल सिंह यादव, अमर साहू संजीव वर्मा,शीतल राणा लोकेन्द्र गोतम,राजीव सिंह, शशांक,धर्मपाल सिंह,भगवान स्वरूप शर्मा आदि सैकड़ों राम भक्तों ने आरती कर प्रसाद प्राप्त किया।