बदायूँ : उझानी मे मेरे राम सेवा आश्रम पर पुरुषोत्तम मास में चलने वाली श्री राम कथा महोत्सव के 22वें दिन रवि जी समदर्शी महाराज ने केवट प्रसंग का वर्णन किया। केवट ने प्रभु श्रीराम को वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ अपने नाव में बिठा कर गंगा पार करवाया था. रामायण के अयोध्याकाण्ड में इस प्रसंग का बहुत खूबसूरत ढंग से वर्णन किया गया है।

रवि जी समदर्शी महाराज ने सुनाया” भगवान नाव से उतरे केवट ने दंडवत प्रणाम किया और भगवान संकोच में आ गए कि मैं उतराही तो दी नहीं तब भगवान के मन की बात समझने वाली मां जानकी ने अपनी सबसे प्रिय अंगूठी भगवान को दे दी भगवान ने उसे अंगूठी को केश वी केवट की ओर बढ़ाया केवट हाथ जोड़कर कहने लगा प्रभु आपने सब कुछ तो दे दिया मेरे सारे दोष मिट गए दुख मिट गए दरिद्रता मिट गई जन्म-जन्मांतर की आज मजूरी मिल गई। आज नाथ में कहां न पाव जब आप बन से लौटकर आएंगे तब जो भी देंगे वह प्रसाद समझकर में रख लूंगा जानकी जी ने सकुशल यात्रा के लिए मां गंगा की पूजा की और आशीष मांगा कि मैं पति और देवर के साथ सकुशल लौटकर आपकी पूजा करूं। भगवान ने एक वृक्ष के नीचे गंगा के किनारे निवास किया दूसरे दिन प्रात उठकर भारद्वाज ऋषि के आश्रम आए भारद्वाज जी के चरणों में दंडवत प्रणाम किया भारद्वाज जी देखकर प्रसन्न हो गए वह कहते हैं आप जब तक व्रत अनुष्ठान आज सब आपके दर्शन से सफल हो गए।

जानकी जी को प्यास लगी थकावट चेहरे पर देखी भगवान एक वृक्ष के नीचे जहा बहुत से किसान व बनवासी बैठे थे वहीं बैठ गए। गांव की माताओं ने जानकी जी को जल पिलाया और जानकी जी से प्रश्न पूछने लगी हे सुमुखी यह दोनों आपकी कौन है प्रेम भरी वाणी सुन जानकी जी मुस्कराकर संकोच बस बोली जो सहज स्वभाव वाले हैं गौर से हैं उनका नाम लखन है वह मेरे छोटे देवर एक माता ने मुस्कुरा कर कहा अच्छा तो वह दूसरे वाले आपके बड़े देवर होंगे जानकी जीवन नहीं मुस्कुरा गई तिरछा नाम करके मेरे राम जी का परिचय देती हैं इस श्याम गौर शरीर के पक्षी से सुंदर नयन वाले वे मेरे पति हैं सब ग्रामवासी प्रसन्न हुए और भगवान की वहां से सरल नेत्रों से विदा करते हैं

तब भगवान जी बाल्मीकि जी के आश्रम में आए और भगवान ने मुनि वाल्मी को दंडवत प्रणाम किया वाल्मीकि जी बहुत प्रसन्न है उनके मन में अति आनंद है भगवान के दर्शन करके भगवान ने दोनों हाथ जोड़कर बोल महर्षि तुम तो त्रिकालदर्शी हो कुछ भी बता सकते हो कुछ भी कर सकते हो कुछ भी कर सकते हो भगवान ने सारी कथा सुनाई वनवास की वाल्मीकि जी बोले मैं सब जानता हूं मैं सब देख लिया है भगवान बोले जब आप सब जान ही गए हैं तो हमारा एक निवेदन है लेकिन क्या मेरे रहने के लिए कोई स्थान बताइए वाल्मीकि जी बोले ऐसा स्थान बताइए जहां पर आप नहीं हो भगवान मुस्कुरा कर बोले भौतिक रूप से जानकी और लखन सहित में कहां रहूं बाल्मीकि जी कहते हैं आप के रहने के 14 स्थान पांच कर्मेंद्रियां पांच ज्ञानेंद्रियां मन बुद्धि चित्त और अहंकार हमारे जीवन की हमारे शरीर की प्रत्येक इंद्री भगवान को प्राप्ति का साधन है यह भोग का नहीं और गोस्वामी जी के दर्शाते हैं बाल्मिक जी के माध्यम से बाल्मीकि जी भगवान से कहते हैं जिनके कान समुद्र के समान हैं जो कथा सुनते ही रहना चाहते कभी भरते नहीं जिनके नेत्र केवल आपके दर्शन को चातक की तरह 1 गए जिन्हें केवल आप पर भरोसा है आप पर विश्वास है और जो आपको प्रतिदिन भोग लगाकर भोजन करते हैं यहां तक कि कपड़ा भी आपको समर्पित करके पहनते हैं आप उनके हृदय में निवास करें जो लोग सिर झुका कर ब्राह्मणों को देखकर प्रणाम और सम्मान करते हैं और जो प्रतिदिन केवल और केवल राम की पूजा करते हैं राम के अलावा हृदय में किसी का कोई स्थान नहीं है उनके चरण तीर्थ यात्रा के लिए इस्तेमाल होते हैं और तुम्हारा मंत्र ही जपते रहते हैं तुम्हें ही सारे सपरिवार पूछते हैं ऐसे भक्तों के हृदय में अपने पास करें और जिनके हृदय में काम मत मान लो राजद्रोह इस अब नहीं है इनके आया नहीं है सबके प्रिय हैं सबके हितकारी हैं सुख और दुख में गाली देते हैं सत्य बोलते हैं आपके चरणो में प्रीति रखते हैं आप उनके हृदय में निवास करिए और प्रभु सारे संसार की नारियों को जो मां के समान समझते हैं पराए धन को समान समझते हैं जो संपत्ति देखने पर और विपत्ति देखने पर दुखी नहीं होते रहते हैं आप उनके हृदय में निवास करें जिनके सब कुछ आप ही हैं जो सब के गुण देखता है गाय और ब्राह्मण के लिए संकट संहिता है नीति में निपुण है संगत में मर्यादा पूर्ण नीति कहता है उसका सुंदर हो जाति पात धर्म परिवार बढ़ाई और सुख देने वाला घर स्वर्ग नरक और मोक्ष समान है जिसे कर्म से जो मन क्रम वचन से कर्म से आपका दास है आप उसके हृदय में घर बनाइए और जिसे कुछ जो कुछ मांगते ही नहीं है जो सहज स्वाभाविक आपसे प्रेम करते हैं आप उनके मन में निरंतर निवास करें

वैसे प्रभु आप चित्रकूट के पर्वत पर निवास करें जहां सब प्रकार से आपको आनंद प्राप्त होगा अत्रीय आदि मुनि वहीं पर रहते हैं वे जो जब तक करते हैं कठिन तपस्या करते हैं उन सब को आप दर्शन देकर जीवन धन्य मनाई भगवान महावीर चल दिए उसी समय देवता नाग किन्नर दीपाल विभिन्न देशों में आकर भगवान को अपने-अपने दो परेशानियां बताने लगे भगवान ने सभी के दुख का निदान का आश्वासन दिया सब हाथ जोड़कर कहने लगे आज हम समाप्त हो गए भगवान के दर्शन कर सब विदा लेकर अपने-अपने धाम चले गए जैसे ही प्रभाव का समाचार कॉल भी लो करा लो बनवासी गिरी वासियों को हुआ सब हाथ में कंदमूल फल दोनों के दोनों ले लेकर भगवान के सामने आए और हाथ जोड़कर समर्पित किया भगवान और कहने लगी भगवान हम आपकी रक्षा करेंगे रामजी सबको गले लगाकर हालचाल पूछते हैं क्योंकि *रामहि केवल प्रेम पियारा जान लेहु जो जाननि हारा*

भगवान केवल और केवल प्रेम और भाव के भुखे है। आज यजमान रामकुमार साहू उर्फ राज,पत्नी रुचि रही,डॉ शरद कुमार द्विवेदी का उनकी सेवाओं हेतु व्यासपीठ से सम्मान किया गया।

 

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