BUDAUN SHIKHAR

सहसवान

रिपोर्ट आसिम अली

सहसवान– नगर की कोतवाली परिसर में बने आवास हो चुके है जर्जर पुलिसकर्मी जर्जर आवासों में रहने को मजबूर है। खंडहर हुए इन आवासों में इन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। किसी दिन भी हो सकता है हादसा घट सकती है अप्रिय घटना बिभाग ने नही ली सुध
जिस विभाग को समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है उसी विभाग के कर्मचारी हर समय खौफ के साये में रहते हैं। पुलिसकर्मियों को मिले आवासों की स्थिति इतनी खस्ता है कि वे किस दिन धराशायी हो जाये इसका ठिकाना नहीं है। हालांकि विभाग द्वारा पुलिसकर्मियों को इन जर्जर आवासों से निजात दिलाने की व्यवस्था नहीं की गई है। परिसर में कुछ आवासों को छोड़कर बाकी आवास नए है कई आवास सालों पुराने होने से पूरी तरह खंडहर हो चुके हैं पुलिसकर्मियों को जर्जर आवास में रहना खतरे से खाली नहीं है। आवासों का अभाव होने से मजबूरन पुलिसकर्मी एवं उनके परिवारों को इन भवनों में रहना पड़ रहा है। जबकि इन आवासों की हालत ऐसी है कि दीवारों में जगह-जगह दरार पड़ी हुई है। कई जगह से चूना गिरता रहता है छ्तो की हालात बद से बदतर है जिसके चलते बरसात के दिनों में तो पुलिसकर्मियों को दिक्कत हो जाती है, जब बरसात का पानी सीधे भवन में जाता है। इन भवनों में हमेशा हादसा होने का अंदेशा बना रहता है
पुलिस थाने में पदस्थ पुलिसकर्मियों को एक लंबे समय से आवासों की समस्या से जूझना पड़ रहा है। कुछ सही आवास है जर्जर आवासों की स्थिति इतनी खराब है कि किसी भी दिन धराशायी हो सकते है। विभाग के द्वारा इन आवासों की मरम्मत के लिए प्रयास नहीं किये गये है जिसका खामियाजा पुलिसकर्मियों को भुगतना पड़ रहा है। करीब आधा दर्जन से अधिक पुलिसकर्मियों के आवास पूरी तरह से जर्जर है। इनमें शौचालय, पेयजल सहित अन्य बुनियादी सुविधाएं भी मौजूद नहीं है। इनमें रहने वाले पुलिसकर्मी हर समय दहशत के साये में जीवन गुजारते है।
थानों में पदस्थ पुलिसकर्मियों के लिए आवास की समस्या काफी जटिल है। अधिकांश पुलिसकर्मियों के पास रहने का ठिकाना नहीं है ज़्यादातर पुलिस कर्मी निजी किराए पर लिए आवास में रहते है थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों को नाममात्र का भत्ता मिलता है। पुलिसकर्मियों को सात सौ रुपये लेकर दो हजार रुपये तक भत्ता मिलता है। आरक्षकों को सात सौ रुपये और उपनिरीक्षक को दो हजार रुपये तक मिलता है। इतने पैसों में आवास की व्यवस्था करना भी आसान नहीं रहता है। पुलिसकर्मियों को आवास भत्ते के रूप कम रुपये मिलते हैं। यही वजह है कि मजबूरी में पुलिस कर्मी जर्जर आवासों में रह रहे हैं।

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