मेरे राम सेवा आश्रम पर एक मास की राम कथा (मासपारायण) के 17 दिवस पर मेरे राम सेवा संस्थान के संस्थापक एवं श्री राम कथा मर्मज्ञ रवि जी समदर्शी महाराज ने धनुष यज्ञ की कथा को सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया

मंडप में अपनी सखियों के साथ जानकी जी का प्रवेश होता है जानकी जी को देखकर समस्त समाज मोहित हो गया तब बंदी जनों ने बताया जो कोई भी भगवान शंकर के इस धनुष को प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी के साथ जानकी जी का विवाह होगा और तीन लोगों में जय-जयकार होगी यस का लेगा सभी आप अपने देवताओं को मना कर धंधा चलते हैं कहते हैं हे गणेश भगवान मैं आपको सवा मन लड्डू चढ़ाऊंगा और जब नहीं उठा पाते हैं वापस आते हैं तो कहते हैं और किसी से मत तुड़वाना मैं ढाई मन लड्डू चलाऊंगा यह कहते हैं सहस्र अर्जुन और रावण धनुष उठाने आए लेकिन धनुष तस से मस ना हुआ

सब ने मिलकर उठाया फिर भी हिला तक ना सके

राजा जनक को क्रोध आ गया,दुखित भाव में बोले लगता है परशुराम ने पृथ्वी से समस्त वीरों को मिटा दिया

अब कोई अपनी वीरता का ढोंग मत पीटना, और बोले विवाह की आज छोड़कर अपना अपने घर जाओ लगता है लगता है भगवान को जानकी का विवाह मंजूर नहीं

लखन जी खड़े होकर क्रोध में कहने लगे जहां भी रघुवंशी बैठे होते हैं वहां इस प्रकार की भाषा उपयोग नहीं करते जनक जी को इंगित करके कहने लगी

विश्वामित्र जी ने कहा राघव उठो जनक जी का दुख दूर करो भगवान सहज उठे गुरुदेव को प्रणाम किया माता-पिता को प्रणाम किया पृथ्वी माता को प्रणाम किया अपने इष्ट शंकर भगवान को प्रणाम करके धनुष के पास पहुंचे जैसे ही धनुष धनुष को उठाकर डोरी खींची इस समय कल कद कड़कड़ की आवाज के साथ धनुष के टुकड़े-टुकड़े हो गए

जानकी जी को बुलाकर भगवान के गले में माल्यार्पण कर दिया इस समय भृगु के पुत्र भगवान परशुराम क्रोधा वेष में फरसा हाथ में लेकर पधारे गोरा शरीर है मस्तिष्क पर त्रिपुंड का तिलक लगा है जनक जी ने जानकी जी को बुलाकर प्रणाम कराया, विश्वामित्र जी ने अपना परिचय देते हुए राम लखन का परिचय कराया और राम लखन ने चरणों में माता रखकर आशीष प्राप्त किया परशुराम जी ने जनक से कड़ी भाषा में पूछा कि धनुष किसने तोड़ा

भगवान ने आगे जाकर विनम्र भाषा में बोला हे नाथ जिसने भी धनुष तोड़ा हुआ वह आपका कोई दास होगा क्या आज्ञा है मुझे कहें क्रोध में आकर कहने लगे सेवक सब कई करता है ऐसे लड़ाई के काम नहीं करता

राजाओं की तरफ इशारा करके कहने लगे जिसने भी धनुष तोड़ा है उसे अलग कर दो नहीं तो मैं सभी को मार डालूंगा तब लखन जी आगे आए और बोले बचपन में हमने बहुत सारी धनुइया तोड़ डाली अब तो आप नाराज हुए नहीं,इस धनुश पर आपका कैसा मोह है

गोद में परशुराम जी ने खसरा उठा लिया सारी सभा घबरा गई तब भगवान सामने आए और कहने लगे आप हमसे बड़े हैं हमारा नाम राम है और आपका नाम परसु सहित परशुराम है

आप हमसे सब प्रकार से बड़े हैं हम आपका आदर करते हैं सब प्रकार से हम आपसे हारे ,हमारे अपराध क्षमा करें वे विप्रदेव , तब परशुराम कहने लगे मुझे युद्ध कर भगवान बोले कहां चरण और कहां माथा ,मैं आपसे युद्ध कैसे कर सकता हूं मैं तो ब्राह्मणों का सम्मान करता हूं तब परशुराम जी को थोड़ा आभास हुआ उन्होंने कहा मुझे लगता है,तुम विष्णु के अवतार हो भगवान ने कहा मैं तो एक साधारण मनुष्य हूं,यह धनुश लो चला कर दिखाओ और धनुष परशुराम जी के स्कंद से निकलकर सीधे भगवान के हाथ में चला गया परशुराम जी समझ गए यही विष्णु के अवतार हैं और हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करके तपस्या करने के लिए बन पर्वत की ओर चले गए, आज की यजमान अंशुल श्वेता छाबड़ा रहे विद्वान पंडित मनोज कुमार शर्मा ने विधि विधान से समस्त ग्रह वेदियों का पूजन कराया व्यास पीठ और व्यास पूजन कराकर आरती कराई, प्रसाद वितरण साहू बरतन भंडार पंखा रोड अमरदीप साहू ने कराया, कथा में शैलेंद्र शर्मा भाजपा नेता बिल्सी गौरव भारद्वाज सौरभ भारद्वाज विष्णु गुप्ता अंशुल छाबड़ा मनोज कुमार धीरेंद्र सोलंकी अलंकार सोलंकी विकास चौहान अंजू चौहान राजू चौहान बाबू शाक्य धर्मपाल अरविंद शर्मा आशुतोष उपाध्याय टामसन महेश्वरी गिरीश पाल सिसोदिया गजेंद्र पंत गिरीश पाल सिसोदिया अंकित चौहान सचिन चौहान अमर साहू अमरदीप साहू ब्रह्मानंद कमलेश कुमार दीपेश सत्यम उम्मेद सिंह कुशवाहा साधना सोलंकी प्रियंका सोलंकी वीरपाल सिंह सोलंकी भगवान स्वरूप शर्मा कमलेश मिश्रा कामिनी तिवारी मोना राखी साहू धर्मेंद्र साहू कल्पना मिश्रा,शीतल राणा, अनुराधा सक्सेना सहायता शर्मा मनी सक्सेना आदि सैकड़ों भक्तों ने आरती करके प्रसाद प्राप्त कर पुन्य लाभ अर्जित किया

 

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