बदायूँ : भाजपा कार्यालय पर भारत विभाजन विभीषिका कार्यक्रम के संबंध में जिलाध्यक्ष राजीव कुमार गुप्ता, जिला प्रभारी राकेश मिश्रा, सांसद डॉ. संघमित्रा मौर्य ने मीडिया को बताते हुए कहा देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। 14 अगस्त भारतीय इतिहास में काला दिवस था। भारत के इतिहास में ऐसा दुर्भाग्यशाली दिन था जिस दिन भारत के भूगोल, समाज, संस्कृति सभी का बटवारा हो गया। 14 अगस्त भारतीय इतिहास के काला दिवस को भारतीय जनता पार्टी बंटवारे का दर्द झेल रहे परिवारों के साथ मनाएगी।

जनपद बदायूँ के कई परिवारों ने विभाजन का दर्द झेला है जो निम्न हैं।

(1) भाजपा नेता श्याम अरोरा बताते हैं कि मेरी माँ शान्ती देवी पाकिस्तान के जिला मरदान के एक गांव की रहने वाली थी जो वर्तमान में विजय नगर कालोनी बदायूँ में मेरे साथ रहती हैं माँ की आयु सौ वर्ष से अधिक है वे अस्वस्थ चल रहीं हैं। माँ शान्ती देवी बताती हैं कि बंटवारे के समय को याद कर रुआंसी आंखें भर आतीं है। कुछ हिन्दू महिलाओं को बुर्का पहनकर बाहर निकलना होता था सुन्दर महिलाओं को रोक कर जाने दिया जाता था। सिक्ख मिलिट्री की मदद से भारत में आ सके यहां रुकुम सिंह इंटर कालेज में ठहरे थे और आरएसएस के लोग भोजन लाकर देते थे। उसी का एक प्रमाण आज भी मेरे पास रखा है एक बंदूक का लाइसेंस जो पाकिस्तान से भारत आ गया था और बंदूक रास्ते में छीन ली गई थी।

(2) विभाजन के दौरान के संस्करण सुनाते हुए श्याम सुंदर थरेजा ने अपने पूर्वजों से सुनी हुई घटना बताते हुए कहा कि जैसे जैसे काफिले चलते थे उन गाँवों से अधिक से अधिक लोग जुड़ते जाते थे जहाँ से वे गुजरते थे, काफिलों की लम्बाई बढ़ती जाती थी जो 10 मील से 27 मील तक लम्बा फैल जाता था और इसमें हजारों की तादाद में लोग शामिल हो जाते थे।

(3) विभाजन के दौरान की घटना बताते हुए राकेश धीगड़ा ने कहा पूर्वजों ने विभाजन के समय बहुत कष्ट सहा ।

1947 में हुई हिंसा की घटनाओं और बँटवारे की घोषणा के चलते लाखों लोग रातों रात अपने घरों से पलायन को मजबूर हो गये थे।

(4) विभाजन के समय हुई हिंसा को स्वयं से देखने वाले जगदीश अरोरा बताते हैं यह फल 4 मार्च 1949 को शुरू हुआ, पुलिस में हिन्दुओं और सिखों के एक जुलूस पर जो बहुत बड़ा नहीं था और ऐसा लगता था कि छात्रों के नेतृत्व में था। गोली चलाई, करीब 125 छात्र गंभीर रूप से घायल हुए तथा 10 छात्र जो सभी डी.ए.बी. कॉलेज लाहौर के थे मारे गए थे, 6 मार्च की सुबह तक अमृतसर जालंधर रोवलपिंडी मुल्तान और सियालकोट समेत पंजाब के मुख्य शहरों कीट में दंगो की लपेट में घिर गए थे।

(5) समाजसेवी अशोक खुराना अपने शब्दों में कहते हैं-

अपना सब कुछ छोड़कर, आये भारत देश,

उनके इस बलिदान से, मिला सुखद परिवेश।

भूखे प्यासे जागकर, कितने सहे कलेश,

सोच सोच कर आज भी बढ़ता भावावेश।।

 

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