बदायूँ : मेरे राम सेवा आश्रम पर मासिक श्री राम कथा महोत्सव में पूज्य गुरुदेव रवि जी समदर्शी महाराज ने राम भरत मिलाप से कथा का प्रारंभ किया।

महाराज जी ने बताते हुए कहा राम जी से मिलने की उत्कंठा में अवध वास रात्रि भर भजन कीर्तन मनन साधना ध्यान में व्यस्त रहे प्रात होते ही भारत जी के साथ चलने को तैयार हैं जय मंगल ध्वनि के साथ माताएं पालकी पर रथ वाले रथ पर अरुंधति और वशिष्ठ जी राजतिलक की सामग्री लिए आगे आगे और भरत शत्रुघ्न पैदल ही चल रहे थे मां ने भारत को बहुत समझाया तब जाकर भारत और शत्रुघ्न रथ पर सवार हुए पहले विश्राम सबने तमसा नदी और दूसरा विश्राम गोमती नदी पर किया प्रातः श्रृंगवेरपुर पहुंचे किसी ने गुहु को बताया राजा भरत चतुरंगी सेना के साथ वन की ओर जा रहे हैं दुखी हो गया सोचने लगा भरत बन की ओर क्यों जा रहे है तो केकई का बेटा कहीं कोई कपट कुचल चलने की तैयारी तो नहीं है कहीं भगवान पर आक्रमण तो नहीं कर रहे पूरे गांव को इकट्ठा करके सबको समझाया कि अगर हम युद्ध में मारे गए तब भी लाभ है और जिंदा रहे तब भी हाथ दो हाथ मुद मोदक मोरे सब ने अपने अपने अस्त्र-शस्त्र हाथ में ले लिए जैसे ही एक साथ सब चले उसी समय एक ठीक हुई बुजुर्ग व्यक्तियों ने सबको रुकने को कहा तब यह तय किया गया कि भारत की मना स्थिति पर की जाए एक टोकरी में कंदमूल फल सात एकता का प्रतीक है दूसरों के बने हुए पक्षी समझौता का प्रतीक है तीसरी टोकरी में मछलियां जो युद्ध का प्रतीक है तीनों क्रिया तीन साथियों के साथ लेकर आगे आगे जा रहे थे दूर से देखा जैसी पता लगा ये गुहू है रथ छोड़कर दौड़कर आए और हृदय से लगा दिया राम जी का शाखा तो मुझे राम जैसा ही है भारत जी का स्नेह देखकर गुरु सजल नेत्रों से भरत का स्वागत करते हैं भरत जी ने पूछा आप कैसे हैं गूहू भैया भरत भैया पहले हमारी कोई छाया तक पसंद नहीं करता था पर जब से मेरे राम जी ने मुझे अपनाया है तब से मेरे जैसा सौभाग्यशाली इस संसार में कोई नहीं माता लखन समझकर आशीष देती हैं गूहु ने सब की समुचित व्यवस्था की सीता राम ठहरे थे वह जगह भरत जी को दिखाई भरत की साष्टांग प्रणाम करते हैं रोकर के कहते हैं मेरे प्रभु मां को जमीन पर सोना पड़ा गुहु भारत जी को समझाता है पूरी रात मेरे राम जी आपकी बडाई करते रहे वह आपको अति प्रेम करते गुरु और भरत जी की सारी रात राम चर्चा करते बीत गई प्रातः सब उठे रामघाट को प्रणाम कर नाव से गंगा पार की स्नान कर भरत जी कहते हैं जहां-जहां स्वामी के चरण पड़े हो वहां सेवक को माथा रखना चाहिए भरत जी पैदल ही चलते हैं यहां से अधिक अंड का किरण मार्ग है पैरों में छाले हैं कमल के पत्ते पर उसके करण जैसे सूर्य की किरणों से चमकते हैं ऐसे ही भरत जी के पैर के छाले दिखते हैं राम राम जपते पावन भूमि में प्रवेश किया भरत जी ने त्रिवेणी को प्रणाम किया सफेद और श्याम जल का रंग देखकर सीताराम की याद आई और प्रणाम किया भाव में डूब गए हाथ जोड़कर बोले मुझे धर्म अधर्म का ध्यान नहीं भले ही आप मेरी बेटी समान पर आज मैं आपसे हाथ फैला कर भीख मांगता हूं क्योंकि मैं दीन हूं दुखी हूं प्रयाग से स्वर आया भरत जी आपके पास तो सब कुछ है फिर आपको क्या चाहिए भरत जी कहते हैं मुझे अर्थ नहीं चाहिए काम नहीं चाहिए धर्म नहीं चाहिए और ना मुझे मुफ्त चाहिए मुझे केवल इतना वरदान देना जन्म जन्मांतर भगवान के चरणों में ही मेरा प्रेम बना रहे और दूसरा कुछ नहीं *सीताराम चरण रति मोरे*

*अनु दिन बड़ही अनुग्रह तोरे*

भरत जी हम आपको आशीष दे सकती हैं आप सब प्रकार से सब प्रकार से साधु हैं आपके दर्शन से हम धन हो गए सभी ने स्नान किया लेकिन भारत ने सरस्वती को ना देखा ना उधर गए ना स्नान किया भारत की कहते हैं जो मेरे राम को मेरे घर से मुझसे दूर करेगा मैं उसे देखा तक नहीं भारद्वाज जी के आश्रम पहुंचे भारद्वाज जी दौड़कर आए हृदय से लगा लिया परम संत है भारत जी आप संकोच में ग्लानि में भारत जी दुबे आपने मुझे गाली क्यों लगाया मैं तो पापी हूं भारद्वाज जी कहते हैं आप कारण गलानी बस हो राम जी तुमसे कहीं अधिक प्रेम करते हैं किसी को नहीं करते इतना जब प्रज्ञा स्नान कर रहे थे मैं संकल्प पड़ा उसमें जैसे ही भारत खंडे आया तुम्हारी याद पर फूट-फूट कर रो पड़े गुन बखान करने लगे बोले भरत मेरे भाई का नाम है तुम्हारा प्रेम तो नवोदय चंद्र मां जैसा है और भरत सुनो हम झूठ नहीं बोलते हम उदासीन सन्यासी हैं किसी का पक्ष नहीं करते तप करते वन में ही रहते हैं लालच बस तुम्हारी प्रशंसा नहीं कर रहे सब साधन तप जप का फल सीताराम जी का दर्शन हमें मिला,भगवान के दर्शन का फल होता है संत और आज तुम्हारा दर्शन करके हम धन्य धन्य हो गए और समस्त साधक , सिद्धि से सेना परिजन सहित भारत की सब प्रकार से व्यवस्था की लेकिन भरत साधनों,व्यवस्थाओं से मुक्त एकांत जमीन पर सयन और केवल भजन कोई भोजन नही इंद्राणी बहुत प्रकार से धूप वर्षा और सर्दी द्वारा भारत का मार्ग बाधित किया गुरु बृहस्पति को पता चला तो उन्होंने डांट कर समझाया और भरत का मार्ग सुगम कराया इंद्र ने अपना निर्णय बदल कर जगह छांव और सब प्रकार के सहयोग करने लगे भारत जी ने गुरु से राम की सारी कथा सुनी और अनुराग में डूब गए रात्रि यमुना किनारे निवास कर प्रातः स्नान ध्यान से निवृत होकर मन ही मां यमुना जी को प्रणाम कर और भगवान के सीताराम जी के चरणों में प्रेम बना रहे ऐसा वरदान मांगा थोड़ा आगे चले तब घूमने बताया जो चित्रकूट नाम का जो पर्वत है पाया श्री नदी के किनारे सीता मां सहित दोनों भाई वही निवास करते हैं भारत जी ने वहीं से साष्टांग प्रणाम किया खुशी के मिलन के आंसू नहीं रुकते राम जी की सब जय बोल रहे इधर जानकी जी राम जी को अपना सपना बताती है मैंने तीनों माता को श्वेत वश में देखा है भगवान चिंतित हुए लेकिन जानकी जी को समझा दिया लखन से कहते हैं भैया यह सपना मुझे ठीक नहीं लगता लगता है कोई अशुभ समाचार मिलने वाला है नित्या की वाशी साधु सेवा सम्मान भजन स्नान करके कुटिया में लौटे उत्तर दिशा की ओर दृष्टि गई आकाश में धूल छा गई पशु पक्षी कि कल भी घबरा भगवत शरण में आए लखन जी ने भगवान ने धनुष बाण उठा लिया देखते ही कॉल बिल बोले प्रभु कोई भारत नाम के राजा अपनी सेवा के साथ इधर कुछ कर रहे हैं राम जी तो प्रेम भाव में डूब गए लेकिन सोचने लगे सेवा के साथ भारत क्यों मारा लखन ने भगवान के चेहरे पर चिंता की रेखा देखीभगवान से कहने लगे आप सीधे सच्चे हैं ऐसे ही सब कुछ समझते हैं वह तो केके का बेटा है विजुअल पर कभी अमर बेल नहीं आती उसे हमारा बनवास भी नहीं सुहाता पर वह आप चिंता ना करें अगर उसकी सहायता मे सैकड़ो शंकर भी आए तो आपके चरणों की सौगंध वे भी जीवित नहीं जाएंगे l

आकाशवाणी हुई लखन आपके बाल और प्रताप को कौन नहीं जानता लेकिन हमारी प्रार्थना आए बिना विचारे निर्णय नाल भारत शरणागति को आ रही है भगवान लखन को समझा कर कहते हैं लखन तेरा जन्म तो हर युग में होता है लेकिन भरत केवल त्रेता में आया करता है लखन में तुम्हारी पिता की सौगंध खाकर कहता हूं भरत का भाई जगत में दूसरा नहीं है भारत रघु के वंश के सरोवर का हंस है अगर इस संसार में भरत का जन्म नहीं हुआ होता तो धर्म की दूरी को खोल धारण करता इधर भरत जी प्रातः जल्दी उठकर स्नान ध्यान कर निषाद और गुरु को लेकर से सभी को ही नदी किनारे छोड़कर भगवान की ओर चले निषाद जी भरत जी को संकेत करते हैं भैया देखो वह धमाल पाकर जामुन के बीच में जो बट वृक्ष के नीचे जो नदी के समीप है वही मेरे रामजी की कुटिया है जानकी मैया लखन भैया सहित भगवान वही रहते हैं वही वेदिका,तुलसी के पौधे हैं विभिन्न प्रकार के फूलों के पौधे हैं भरत जी वहीं से दंडवत करते हैं भगवान के आवास में सामने ना जाकर भरत जी पीछे से प्रवेश करते हैं भगवान की कुटिया से पहले ही गिर पड़े भगवान लेटे हैं आवाज तो सुनी भगवान जब लखन ने कहा भैया भरत, उसी समय भगवान आकस्मिक उठे दौड़ पड़े पटका तरकस धनुष बाण गिर गए मेरे प्रभु भक्तों पर कृपा करते हैं तो सब ऐसे ही छोड़ देते हैं *जो तू आ गए एक पल में आऊंगा आठ* भगवान की चीजें क्यों गिरी मन बुद्धि चित्त अहंकार सब कुछ छोड़ दिया भगवान ने, भरत जी को ह्रदय से लगा लिया, ऐसा लगा संपूर्ण प्रेम प्रेम पूर्ण से मिल रहा है इस प्रेम मिलन को देखकर देवता घबरा गए आपस में कहने लगे कहानी भगवान भारत जी का प्रेम देखकर वापस अवध ना लौट जाए राक्षसों के नाश का क्या होगा बृहस्पति ने सभी को समझा डर शान्त किया, कोई किसी से ना कुछ बोलता है ना कुछ पूछता है सब एक दूसरे को देखते भारत जी ने मां को शत्रुघ्न जी ने सबको प्रणाम किया वह बोले हे नाथ गुरुदेव के साथ माताएं सचिव सैनिक और आदिवासी भी आए हैं मेरे राम जी ने दौड़कर सभी को प्रणाम स्वागत सम्मान किया आशीष प्राप्त किया l

आज 24 दिन की कथा मैं दिवस यजमान मान कमलेश मिश्रा ने बेदियों का विधि बत पूजन किया व्यास पीठ का पूजन व्यास तिलक कर आरती की ,प्रसाद वितरण देवेंद्र सिंह की ओर से किया गया और भोजन सहयोग अरविंद शर्मा की ओर से कथा में गिरीश पाल सिसोदिया राजू चौहान अंजू चौहान सरिता मिश्रा विकास चौहान अर्चना चौहान विष्णु गुप्ता एडवोकेट हरिशंकर कामिनी तिवारी मोना चौधरी गुड्डी गुप्ता अर्चना चौहान अरविंद शर्मा सहायता शर्मा विकास चौहान सत्येंद्र चौहान लोकेंद्र कुमार मनोज शर्मा कल्पना मिश्रा राखी साहू के राकेश साहू अमर साहू बाबू शाक्य धर्मपाल लक्ष्मी गुप्ता अजय कुमार शशांक अंकित कुमार नमन अमन राकेश एडवोकेट महेंद्र सक्सेना टामसन महेश्वरी धर्मेंद्र सक्सेना अनुराधा सक्सेना रुचि राघव मनी सक्सेना अखिलेश गौतम लक्ष्मी गुप्ता लक्ष्मी शर्मा आदि सैकड़ों राम भक्तों ने आरती पूजा के साथ प्रसाद प्राप्त किया।

 

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