आज (5 फरवरी) वसंत पंचमी पर सात शुभ योग बन रहे हैं और दिनभर अबूझ मुहूर्त भी रहेगा, लेकिन देवी सरस्वती की पूजा के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा रहता है। इसलिए सरस्वती पूजन दोपहर 12.20 से पहले कर लें। अगर किसी वजह से इस समय में पूजा नहीं कर पा रहे हैं तो दोपहर में 3.20 बजे से शाम 5.50 बजे तक देवी पूजा की जा सकती है।
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि आज सुबह सूर्योदय के समय की कुंडली के पंचम भाव में राहु है, इस कारण बुद्धिवर्धक योग बन रहा है। इसके साथ ही भारती योग भी है। भारती भी देवी सरस्वती का एक नाम है। इनके अलावा बुधादित्य, सिद्धि, शश, शुभकर्तरी और सत्किर्ती नाम के शुभ योग भी बसंत पंचमी पर बन रहे हैं। कुल सात शुभ योगों की वजह से ये पर्व बहुत खास हो गया है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक वसंत पंचमी पर उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र होने से ये पर्व पंचक योग में मनाया जाएगा। आमतौर पर वसंत पंचमी और वसंत ऋतु को जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इन दोनों का कोई संबंध नहीं है। वसंत पंचमी देवी सरस्वती के प्रकट उत्सव के रूप में मनाया है। इस साल वसंत ऋतु 15 मार्च से शुरू हो रही है। विद्यार्थियों के साथ ही संगीत और लेखन से जुड़े लोगों के लिए वसंत पंचमी का महत्व काफी अधिक है। इस दिन कोई नई विद्या सीखने की शुरुआत कर सकते हैं। इसे वागीश्वरी जयंती और श्री पंचमी भी कहा जाता है।
सरस्वती प्रकट उत्सव को वसंत पंचमी क्यों कहते हैं?
माघ मास की पंचमी तिथि पर देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। देवी के प्रकट होने पर सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की गई थी। सभी देवता आनंदित थे। इसी आनंद की वजह से बसंत राग बना। संगीत शास्त्र में बसंत राग आनंद को ही दर्शाता है। इसी आनंद की वजह से देवी सरस्वती के प्रकट उत्सव को वसंत और बसंत पंचमी के नाम से जाना जाने लगा।
क्यों प्रकट हुई थीं देवी सरस्वती?
ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना कर दी थी, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने देखा कि प्राणियों में कोई आनंद नहीं है। सभी का जीवन नीरस है। तब उन्होंने विष्णु जी से परामर्श करके अपने कमंडल से थोड़ा जल जमीन पर छिड़का। उस जल से सफेद वस्त्रों वाली वीणा के साथ देवी सरस्वती प्रकट हुईं। देवी सरस्वती के आने के बाद ही सृष्टि में विद्या और ज्ञान फैला। ये तिथि माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी ही थी। देवी सरस्वती के आने के बाद सभी के जीवन में आनंद, उत्साह और प्रसन्नता आ गई।