नई दिल्ली : देश के गांवों में रोजगार के लिए लाइफ लाइन कहीं जाने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में कार्यरत श्रमिको की दिवाली इस बार फीकी रह सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक देश की मनरेगा योजना के खजाने में अब रुपये नहीं बचे हैं जिससे 21 राज्यों में काम कर रहे मजदूरों के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र की यह योजना वित्तीय वर्ष के आधे रास्ते में ही समाप्त हो गई है, जिससे कि अब मजदूरों को कम से कम एक महीने तक संकट का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि अनुपूरक बजटीय आवंटन अगले संसदीय सत्र मे किया जाएगा। इस बीच आर्थिक संकट के समय मजदूरी भुगतान में देरी करके श्रमिकों द्वारा जबरन श्रम कराए जाने की कोशिशों की हर तरफ निंदा हो रही है। केंद्र अब कई राज्यों पर जमीन पर काम के लिए जबरदस्ती मांग पैदा करने का आरोप लगा रहा है।
लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के लिए संजीवनी साबित हुई मनरेगा योजना
मनरेगा एक मांग आधारित योजना है, जो किसी भी ग्रामीण परिवार को 100 दिनों के अकुशल काम की गारंटी देता है। पिछले साल के लॉकडाउन के दौरान, इस योजना को 1.11 लाख करोड़ रुपये का उच्चतम बजट दिया गया और रिकॉर्ड 11 करोड़ श्रमिकों के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा प्रदान की गई।