नई दिल्ली, एजेंसी । केंद्र में 48 लाख कर्मियों व 65 लाख पैंशनरों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन ‘जेसीएम’ की राष्ट्रीय परिषद (स्टाफ साइड) और सरकार के बीच 26 जून को होने जा रही बैठक में कई अहम निर्णय लिए जा सकते हैं। राष्ट्रीय परिषद ने केंद्र सरकारी दफ्तरसरकार के समक्ष बातचीत का जो एजेंडा रखा है, उसमें 29 मांगें शामिल हैं। इनमें सबसे बड़ी मांग पुरानी पेंशन व्यवस्था को बहाल करना और जनवरी 2020 से बंद किए गए डीए व डीआर जैसे भत्तों को जारी कराना है। इसके अलावा 1992 से कर्मियों को मिलने वाले मेडिकल एडवांस में कोई बदलाव नहीं किया गया है। वह राशि आज भी दस हजार रुपये है, जबकि अस्पतालों के अंदर प्रवेश करते ही इतनी राशि तो काउंटर पर ही जमा करा लेते हैं। एडवांस राशि को पचास हजार रुपये करने की मांग रखी गई है। साथ ही नाइट ड्यूटी अलाउंस को लेकर सरकार ने जो सीमा तय की है, उससे कर्मियों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। इस बाबत भी केंद्रीय वित्त मंत्रालय और डीओपीटी के अधिकारियों से बातचीत की जाएगी।
‘जेसीएम’ की राष्ट्रीय परिषद (स्टाफ साइड) के सचिव शिव गोपाल मिश्रा द्वारा केंद्र को यह एजेंडा भेजा गया है। इसमें कहा गया है कि पुरानी पेंशन व्यवस्था को बहाल किया जाए। एनपीएस से कर्मियों को नुकसान हो रहा है। इससे उनका भविष्य भी सुरक्षित नहीं है। रिटायरमेंट के बाद पेंशन उनके जीने का एक बड़ा सहारा होती है। 2004 के बाद भर्ती हुए कर्मियों के लिए अब पेंशन बंद कर दी गई है। इसकी जगह नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) लागू हुई है। इसमें जीपीएफ जैसी सुविधाओं का अभाव है। जिन कर्मियों को जीपीएफ मिलता है, वे घर बनाने या बच्चों का विवाह आदि को लेकर निश्चिंत रहते हैं। जेसीएम ने केंद्र सरकार से मांग की है कि सभी कर्मियों को जीपीएफ में कंट्रीब्यूट करने की इजाजत दी जाए।
केंद्रीय कर्मियों को 1992 में दस हजार रुपये का मेडिकल एडवांस देने की शुरुआत हुई थी। वह राशि अभी तक जारी है। यानी इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। तब कहा गया था कि डॉक्टर जितना खर्च बताता है उतना एडवांस दे दिया जाएगा। यहां भी एक शर्त थी कि एडवांस राशि दस हजार रुपये से ज्यादा न हो। ये भी टीबी या कैंसर जैसी बीमारियों के लिए मिलता है। अगर किसी को सर्जरी या किडनी ट्रांसप्लांट आदि करानी है तो उसके लिए पैकेज डील का अस्सी फीसदी मिलेगा। जेसीएम का तर्क है कि मेडिकल खर्च के एस्टीमेट की 80 फीसदी राशि एडवांस मिलनी चाहिए। आजकल इलाज बहुत महंगा हो गया है, ऐसे में केवल दस हजार रुपये का एडवांस, कर्मियों के साथ एक मजाक है। मेडिकल एडवांस की राशि को दस हजार रुपये से बढ़ाकर कम से कम 50 हजार रुपये कर देना चाहिए। वजह, रिम्बर्समेंट के बिलों का भुगतान होने में लम्बा समय लगता है।
देश के सभी शहरों में सीजीएचएस सेंटर नहीं हैं। ऐसे लाखों रिटायर्ड कर्मी हैं जो शहरों से दूर रहते हैं। इसके लिए उन्हें सौ रुपये प्रति माह मिलते हैं। इसी राशि में उन्हें आउटडोर ट्रीटमेंट कराना पड़ता है। इंडोर ट्रीटमेंट खर्च का रिम्बर्समेंट नहीं होता। पैंशनरों को निजी अस्पतालों में इलाज कराना पड़ता है और उसके बाद में रिम्बर्समेंट के लिए हाई कोर्ट या सीएटी के चक्कर काटने पड़ते हैं। सरकार से मांग है कि ऐसे पैंशनर, जो नॉन-सीजीएचएस क्षेत्र में रहते हैं, उनके लिए कोई विशेष व्यवस्था की जाए। कोविड के दौरान सरकारी कर्मियों के कई तरह के मामले फंसे हैं, उनके निपटारे के लिए सुचारु व्यवस्था बनाने की मांग रखी जाएगी। 7वीं सीपीसी के मुताबिक, कर्मियों को एडहॉक बोनस की जगह प्रोडेक्टिीविटी लिंक्ड बोनस दिया जाए।
केंद्र सरकार के 80 फीसदी कर्मचारी वेतनमान के निचले दर्जे में आते हैं। ऐसे में सरकार ने डीए बंद कर उन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचाया है। सभी सरकारी कर्मियों ने कोरोना की लड़ाई में मदद देने के लिए पीएम केयर फंड में एक दिन का वेतन दिया है। अब सरकार को अविलंब डीए, डीआर व दूसरे भत्ते जारी करने चाहिए। साथ ही 18 माह का एरियर भी कर्मियों के खाते में जमा कराना चाहिए। ट्रांसपोर्ट अलाउंस और रनिंग अलाउंस को आयकर से छूट दी जाए। इस अलाउंस पर केवल 800 रुपये की छूट है। अब अलाउंस राशि 3200 रुपये हो गई है। ट्रांसपोर्ट अलाउंस व डीए को जोड़कर जो राशि बनती है, उसे आयकर के दायरे से बाहर रखा जाए।
आयुद्ध कारखानों को निगमों में तब्दील करने का फैसला वापस लिया जाए। केंद्र सरकार में 747171 पद खाली पड़े हैं। निचले स्तर के पदों को खत्म किया जा रहा है, जबकि ग्रुप ए का कोई पद खत्म नहीं किया गया। ख़ाली पदों पर बिना देरी किए भर्ती की जाए। दूसरे कर्मियों पर काम का भारी दबाव है। नाइट ड्यूटी अलाउंस के लिए ‘बेसिक पे’ की शर्त का नियम हटाया जाए। जिन कर्मियों को 43600 रुपये प्रतिमाह की बेसिक सेलरी मिलती है, उन्हें नाइट ड्यूटी अलाउंस मिलेगा। इससे ज्यादा सेलरी वालों को यह अलाउंस नहीं मिलता। यह तो कर्मियों के साथ भेदभाव है। सरकार को इसे तर्क संगत बनाना होगा।

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